जाने कल क्या हो,
किसे खबर.
बस इस राह पर,
बद्ते जाए कदम.
मंज़िल मिले या ना मिले,
किसे खबर,
रहेगी ये राह,
रहेगा ये सफर...
जाने कितने रंग,
ज़िंदगी दिखाती है.
दो पल की खुशी,
फिर इंतज़ार करती है.
इस धूप- छाव के खेल को,
खेलते है हम,
चाहे कुछ भी हो,
बढ़ते जाते है हम...
मंज़िल मिले या ना मिले,
किसे खबर,
रहेगी ये राह,
रहेगा ये सफर...
आते है कई पल,
जब दिल रोता है.
अकेलेपन का एहसास,
हमे जो होता है...
करते है इंतज़ार,
उस हमसफ़र का..
जो बने अपना साथी,
इस सफ़र का...
साथी मिले या ना मिले,
किसे खबर...
रहेगी ये राह,
रहेगा ये सफ़र....
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I'd written this 2 years back.
My dad read it. He came to me and asked "Did you ACTUALLY write this? "
5 comments:
Rockstar it's simple yet touching & beautiful...I'm sure ur dad would have loved this..I did..keep writing..kudos :)
this is good stuff punk :)
i hope you keep writing in hindi :)
i flunked in my hindi exam man...
so i really don't know whatz written over here...
mind translating it?
Lolz...
Aj...
@Meeta and Viti
Thank you ladies! =)
@Aj
ahahhaha Duude!! Even I was really bad at hindi back in school. But look I can write, Something!
Give it a shot! Not that hard. :P
’दुनिया की केवल मंजिल पर नजर हॆ
लेकिन कहां हॆ मंजिल,यह किसको खबर हॆ.’
-बहुत ही सुंदर रचना,जीवन का सत्य कहा हॆ आपने.
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