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Whispers From My Heart

Friday, July 30, 2010

सफर







जाने कल क्या हो,
किसे खबर.
बस इस राह पर,
बद्ते जाए कदम.



मंज़िल मिले या ना मिले,
किसे खबर,
रहेगी ये राह,
रहेगा ये सफर...


जाने कितने रंग,
ज़िंदगी दिखाती है.
दो पल की खुशी,
फिर इंतज़ार करती है.
इस धूप- छाव के खेल को,
खेलते है हम,
चाहे कुछ भी हो,
बढ़ते जाते है हम...



मंज़िल मिले या ना मिले,
किसे खबर,
रहेगी ये राह,
रहेगा ये सफर...


आते है कई पल,
जब दिल रोता है.
अकेलेपन का एहसास,
हमे जो होता है...


करते है इंतज़ार,
उस हमसफ़र का..
जो बने अपना साथी,
इस सफ़र का...


साथी मिले या ना मिले,
किसे खबर...
रहेगी ये राह,
रहेगा ये सफ़र....


=========

I'd written this 2 years back.

My dad read it. He came to me and asked "Did you ACTUALLY write this? "

5 comments:

meeta said...

Rockstar it's simple yet touching & beautiful...I'm sure ur dad would have loved this..I did..keep writing..kudos :)

baavriviti said...

this is good stuff punk :)
i hope you keep writing in hindi :)

Aj Mercy said...

i flunked in my hindi exam man...
so i really don't know whatz written over here...

mind translating it?

Lolz...
Aj...

Punkster said...

@Meeta and Viti

Thank you ladies! =)

@Aj

ahahhaha Duude!! Even I was really bad at hindi back in school. But look I can write, Something!

Give it a shot! Not that hard. :P

विनोद पाराशर said...

’दुनिया की केवल मंजिल पर नजर हॆ
लेकिन कहां हॆ मंजिल,यह किसको खबर हॆ.’
-बहुत ही सुंदर रचना,जीवन का सत्य कहा हॆ आपने.